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विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है, और इस दुखद घटना के पीछे के जटिल कारणों को जानने में महीनों या वर्षों का समय लग सकता है।

Ahmedabad plane crash : इस दुखद दुर्घटना के पीछे के जटिल कारणों को जानने में महीनों या वर्षों का समय लग सकता है। लेकिन फिलहाल, हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपना ध्यान इस ओर केंद्रित करें कि विमानन प्रणालियाँ किस प्रकार काम करती हैं और उन्हें समझने की दिशा में प्रयास करें।

विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है, और इस दुखद घटना के पीछे के जटिल कारणों को जानने में महीनों या वर्षों का समय लग सकता है।

Ahmedabad plane crash – अहमदाबाद में हुई एयर इंडिया विमान दुर्घटना, जो दशकों में सबसे भयानक है — जिसमें 240 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई — हमें स्तब्ध कर देती है। इस त्रासदी पर कोई भी शोक पर्याप्त नहीं लगता, क्योंकि मृतकों और उनके परिवारों की कहानियाँ अखबारों और टीवी चैनलों में छाई हुई हैं। फिर भी, यह समय है चिंतन करने और सीखने का। अभी यह कहना बहुत जल्दबाज़ी होगी कि गलती कहाँ हुई, लेकिन इतिहास हमें एक बेहतर भविष्य की दिशा में मार्गदर्शन कर सकता है।

पिछले कुछ दशकों में भारत में कई विमान दुर्घटनाएँ हुई हैं — जिनमें से अधिकांश इस हालिया दुर्घटना जितनी भयावह नहीं थीं — और उनके कारणों की ठीक तरह से जांच की गई और उजागर भी किया गया। 2020 में कोझिकोड हादसे और एक दशक पहले मंगलुरु विमान दुर्घटना का मानसिक आघात आज भी ताज़ा है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत सहित विश्व भर में नागर विमानन क्षेत्र ने सुरक्षा के लिहाज़ से सुधार किया है। 2000 तक, शोधकर्ताओं ने पाया था कि हर दस लाख उड़ानों में औसतन दो से भी कम दुर्घटनाएँ हो रही थीं। फिर भी, विमानन दुर्घटनाओं के स्वरूप को गहराई से समझने की आवश्यकता बनी हुई है ताकि यह क्षेत्र और अधिक सुरक्षित बन सके।

हाल की यह दुर्घटना, साथ ही इस दशक की पूर्ववर्ती घटनाएँ, यह मांग करती हैं कि हम केवल दुर्घटना के कारणों तक सीमित न रहें, बल्कि विमानन उद्योग की जटिलताओं को भी समझने का प्रयास करें।

Ahmedabad plane crash : विमानन एक जटिल सामाजिक-तकनीकी और प्रणालीगत क्षेत्र है। सामाजिक-तकनीकी प्रणालियाँ अनेक घटकों से मिलकर बनी होती हैं — जैसे कि विभिन्न भूमिकाओं में लोग, विभिन्न क्षमताओं और शक्तियों वाली तकनीकें, और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के नियम व विनियम। इन सभी घटकों के बीच की पारस्परिक क्रियाएं ही इस प्रणाली के सुचारु संचालन को संभव बनाती हैं। लेकिन जब इन तत्वों के बीच समन्वय में विफलता आती है या प्रणालीगत तालमेल की कमी होती है, तो यह अस्थायी रूप से पूरे तंत्र के ढह जाने का कारण बन सकती है, जो अंततः दुर्घटनाओं का रूप ले सकती है।

दुर्घटनाएं कई कारणों से हो सकती हैं — मानवीय त्रुटियाँ, तकनीकी खराबियाँ, पर्यावरणीय परिस्थितियाँ, रखरखाव में चूक और संगठनात्मक खामियाँ।

इसके अलावा, उड़ान के कुछ चरण अन्य चरणों की तुलना में अधिक जोखिमपूर्ण होते हैं। आंकड़ों के अनुसार, लैंडिंग (उतरने) का चरण सबसे अधिक दुर्घटना संभावित और घातक पाया गया है, इसके बाद क्रमशः इन-रूट फ्लाइट (उड़ान के दौरान) और एप्रोच (लैंडिंग से ठीक पहले का चरण) आते हैं। वहीं टेक-ऑफ (उड़ान की शुरुआत) में दुर्घटनाओं की संख्या तो अधिक रही, लेकिन अन्य गंभीर चरणों की तुलना में मृत्यु दर कम रही।

टैक्सींग ऑपरेशंस — यानी विमान का टैक्सीवे और रनवे पर अपने बल पर चलना — सबसे सुरक्षित माने गए हैं, क्योंकि पिछले पाँच दशकों में इस चरण में कोई भी मृत्यु दर्ज नहीं की गई।

लैंडिंग और एप्रोच चरण को सबसे खतरनाक माना जाता है क्योंकि इनमें जटिल नेविगेशन, मौसम में तेजी से बदलाव, और ज़मीन व रनवे के पास होने के कारण खतरा अधिक होता है।

विमान टेकऑफ (उड़ान भरते समय) और लैंडिंग (उतरते समय) के दौरान सबसे अधिक दुर्घटनाओं का शिकार क्यों होते हैं?

इसमें एक मौसमी प्रवृत्ति भी देखने को मिलती है। मेरी अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ कि मानसून के महीनों, विशेष रूप से जुलाई और अगस्त, और दुर्घटनाओं की संख्या के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध है। अगस्त में सबसे अधिक मौतें दर्ज की गईं, उसके बाद जून का स्थान रहा।

1990 के बाद, अगस्त पर्यावरणीय कारणों से होने वाली दुर्घटनाओं के लिहाज़ से सबसे घातक महीना बना रहा, जबकि सर्दियों के महीनों में आमतौर पर गैर-घातक घटनाएँ दर्ज की गईं।

ये सभी कारक हमें कम से कम इस बात के प्रति सजग कर सकते हैं कि विमानन क्षेत्र से जुड़े सभी पक्षों को कब और कहाँ अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।

हालाँकि, अहमदाबाद में क्या हुआ, इसकी पूरी तस्वीर सामने आने में अभी समय लगेगा। विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है, और इस दुखद दुर्घटना के पीछे के जटिल कारणों को जानने में महीनों या वर्षों का समय लग सकता है। लेकिन इस समय, हमारी जिम्मेदारी यह होनी चाहिए कि हम यह समझने की दिशा में ध्यान केंद्रित करें कि विमानन जैसी जटिल प्रणालियाँ कैसे काम करती हैं

यह ज्ञान सुरक्षा विज्ञान (safety science) और मानव कारक अभियांत्रिकी (human factors engineering) जैसे विषयों का हिस्सा है, लेकिन यह अब तक केवल कुछ विशेष क्षेत्रों, जैसे कि विमानन तक ही सीमित रहा है। अब ज़रूरत है कि सामान्य कार्यबल के बीच भी इस तरह की समझ को बढ़ाया जाए

विमानन क्षेत्र को संचालित करने वाली सामाजिक-तकनीकी प्रणाली (socio-technical system) का हिस्सा होने के नाते, हर स्तर के कर्मचारियों को इन जटिलताओं और उनके आपसी संबंधों को समझने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। अब हमें व्यक्तिगत दोष ढूंढने, मूल कारणों की खोज करने या दुर्घटनाओं को ‘ईश्वर की मर्ज़ी’ मानने की बजाय, व्यापक समझ और प्रणालीगत सुधारों पर ध्यान देना चाहिए।(BTrue News)

लेखक आईआईटी कानपुर में अध्यापन करते हैं। यह उनके व्यक्तिगत विचार हैं।

By Manoj

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